गुरु के महत्ता जगजाहिर बा। गुरु
सच्चा मार्गदर्सक होला। जवनेगां एगो माई अपनी बचवन के राह देखावेले, पालि-पोसी के समाज
में जीए के ढंग सीखावेले, गरमी-बरसात से बचावे ले ओहींगा
गुरु जी भी अपनी चेलन के ममता की गोद में राखेने। अगर सच्चा गुरु मिलि गइनें त
समझीं राउर जीवन के उध्धार हो गइल, राउर मनुज रूप सार्थक हो
गइल, सच्चा गुरु की मिलले से खाली अपने उध्धार ना होला,
अपने लाभ ना होला, अपितु मनई जवने सभा-समाज
में रहेला, ओ सब के उद्धार हो जाला। देस में नेता, अगुआ भइले से जरूरी बा की अच्छा गुरु होखे लोग। अगर देस-समाज में अच्छा
गुरु होई लोग त देस, समाज अपनी आपे सद विकास की मार्ग पर आगे
बढ़त दुनिया के भी राह देखाई अउर पूरा विस में सुख-सांति के हवा बहे लागी। हमरा
लागेला की कवनो भी समाज-देस की सही विकास खातिर इ जरूरी बा की सच्चा गुरु होखे
लोग। अगर सच्चा गुरु होके लागी लोग त अपनी आपे देस में, समाज
में अच्छा नेता, अच्छा इंजीनियर, अच्छा
डक्टर आदी के संख्या बढ़े लागी।
गुरु की महत्ता के प्रतिपादित करत, गोस्वामी तुलसी दास
महराज के एगो दोहा हम इहाँ देहल जाहबि –
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु
बचन रबि कर निकर॥
ए दोहा की माध्यम से परम रामभक्त
तुलसीदास जी महराज कहतानी की हम ओ गुरुदेव महराज की चरनवा के बंदना करतानी जे
किरिपा के समुंदर हईं कहे के मतलब इ बा कि उहाँ का सब पर आपन किरिपा बरसावत रहेनीं
अउर उहाँ का मनई की रूप में साक्षात हरि (बिसनु भगवान) हईं। उहाँ के बचनिया घनघोर
मोह रूपी घनघोर अन्धरिया के नास करे वाला सूरूज भगवान की किररन की समान बा। कहे के
मतलब इ बा कि गुरुजी के बचनिया अपनी चेलन के माया-मोह में कबो ना फँसे देला हाँ पर
एकरा खातिर गुरदेव महराज पर एकदम सरधा, भक्ति होखे के
चाहीं।
गुरु के महिमा अपरंपार बा। कहल जाला की सच्चा गुरु अपनी चेलन के सदा
कल्यान क देला। अपनी चेलन के मोह-माया से निकालि के भगवान के दरसन करा देला। सब
भारतीय संत लोग गुरु की महत्ता के गुनगान कइले में थकल नइखे लोग।
कबीर दासजी कहतानी की-
गुरु गोबिंद दोउ खड़े, काको लागूँ
पाँय, बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद
दियो बताए।
उहाँ का आगे गुरु की महत्ता के
प्रतिपादित करत, गुरु के भगवान से भी श्रेष्ठ बतावन कहतानी की-कबिरा हरि की रूठते गुरु की
सरनन जाए, कह कबीर गुरु रूठते हरि नहीं होत सहाय।
एतने ना कहल गइल बा की,
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो
महेश्वरः। गुरु साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
जवने गुरु के एतना महिमा बा, जवन गुरु के
स्थान भगवान से भी बढ़ि के बा, ओ गुरु के हम सत-सत नमन
करतानी, बंदन करतानी।
पर सही गुरु माने सतगुरु उहे जे
अपनी चेला के उद्धार करा दे। आज कल के गुरुजी लोग, आपन खुदे
कल्यान नइखे लोग क पावत अउर चेलन के भी अझुरवले रहता लोग। चेलन की आँख पर पट्टी
हटावल त दूर अउर भी दु-चार गो पट्टी बाँधि देता लोग ताकि चेला सही चीज मति देखि
पावो। आज के गुरु गुरु न होके अपना के भगवान सिध कइले में लागल बा लोग। जब हमनी
जान केहू के आसिरबाद देनी जां चाहें लेनी जां त मन में, दिल में इ धारना रहेला की भगवान भला करें पर गुरुजी लोग त भगवान की रूप
में सैतान बनि के लोग के गलत रास्ता देखावता लोग। देखीं,केतने
जाने संत, बाबा लोग आपन त सर्वनास कइबे कइल लोग, साथे-साथे लोग, समाज, देस के नाव डुबा देहल लोग। संत के काम ह संतई कइल न की असंतई। लोग के राह
देखावल न की लोग के भ्रमित कइल। खैर रउआँ खुदे समझदार बानी, भगवान रउआँ के विवेक देले बाने। विवेक ए ही खातिर देले बाने की रउआँ सामने
वाला के सुनीं, सम्मान करीं, ओकरी बातन पर विस्वास करीं पर एकरी पहिले अपनी विवेक से तनि परखी लीं।
भेड़िया धंसान कइले के ताक नइखे, विवेक के उपयोग कइले
के ताक बा। हम केतने जाने संत-महात्मा लोगन के देखले बानी, जे चेला ना बनावे.... काहें की ओ लोगन के कहनाम बा की जब हम खुदे अबहिन
भगवान के ना पा पवनि त तोहके कवनेगाँ भेंट करा पाइबि।
इहाँ हम पाठक लोगीं से एगो
प्रार्थना करबि, चिरउरी करबि की रउआँ सोंच-समझि के आपन गुरु बनाईं, आज की समय में गुरु लोग गुरु न हो के, गुरु-घंटाल
बा लोग, अपना के खुदे सर्वश्रेष्ठ बतावता लोग, चेलन के माया-मोह से दूर करे के, कल्यान करे के
डिंग हाँकता लोग अउर खुदे माया-मोह में अझुराइल बा लोग। माई लछमी के सच्चा भगत बा
लोग अउर ईश्वरीय आनंद के बाति करत त बा लोग पर खालि दिखावा की रूप में, अपने त सांसारिक आनंद में लिपटल बा लोग। महँगा-महँगा
गाड़ी में चलता लोग। खूब ऐसो-आराम फरमावता लोग। संत-महात्मा-बाबा लोग साधारन जीवन
जीएला, पर इ लोग त राजसी जीवन भोगता लोग। समाज के धर्म
के कई भागन में बाँटि के रखि देले बा लोग। ए लोगन की वजह से धर्म भी बदनाम हो रहल
बा। हम इ नइखीं कहत की रउआँ कवनो संत-बाबा के सनमान न करीं, श्रद्धा न राखीं पर सही संत के न की असंत के। अउर संत-असंत में पहिचान
रउआँ तब्बे क पाइबि जब अपनी विवेक के उपयोग करबि। केतने लोग के देखले बानी की
घरमें माई-बाप से झगड़ा करेला अउर संतन के चेला बनल फिरेला। अरे पहिले अपनी
माई-बाप के सेवा क लीं, ओ लोगन के खुस राखबि त भगवान
अपनी आपे रउआँ पर परसन्न रहिहें।
हमार आप सबसे से बार-बार बिनती बा
कि रउआँ खुदे सोंची की जवन आदमी आपन कल्यान नइखे क पावत ऊ राउर चाहें समाज के
कल्यान कवनेगाँ करी? त रउआँ से बार-बार बिनती बा की अपनी विवेक के उपयोग करीं। सही अउर गलत में
फरक करीं, फेर देखीं दुनिया के अप्रतिम रूप रउरी सामने
बा, रउआँ सदा परसन्न रहबि अउर समाज, देस के भी परसन्न राखबि।