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रविवार, 10 मार्च 2019

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन….(चौपाई)

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1

भावार्थ:- ए हु चउपाई में गोसाईंजी महराज गुरु के महत्ता प्रतिपादित करत कहतानीं की गुरु महाराज की चरनन के रज (धूरि) कोमल की साथे-साथे सुंदर, विशिष्ट आँखि के ठंडक पहुँचावे वाला, आँखि के वास्तविकता के दरसन करावेला, आँखि के दृव्य-दृष्टि बनावेवाला अंजन ह। ए के लगवले से, एकरी स्मरन मात्र से आँखि के सारा दुख-बेमारी दूर हो जाला। गोसाईंजी महराज आगे कहतानीं की ए अंजन से हम अपनी विवेक रूपी अँखियन के पवितर क के, निरमल क के, संसाररूपी बंधन से छुटकारा दिआवेवाली भगवान राम की कथा मने भगवान राम की चरित के वर्नन करतानीं।

जवलेक आँखि ठीक ना होई त नीमन कइसे लउकी? ए से जरूरी बा की आँखि में गुरु की ग्यान रूपी अंजन के लगावल जाव। गुरु के किरिपा पावल जाव। अगर कुछ नया करे के बा, वास्तविकता के जाने के बा त गुरु के कीरीपा होखहीं के चाहीं। ए दोहा में गोसाईंजी इहो कहतानी की अब हम अपनी आँखि के सुध करत अपनी इस्टदेव भगवान राम की कथा के रउआँ सब के रसपान करावे जा रहल बानी। जय-जय।
नमन गुरुदेव बजरंग बली हनुमान।

---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------


                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

जथा सुअंजन अंजि दृग….(दोहा)

जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1

भावार्थ:- गोस्वामीजी महराज ए दोहा में कहतानी की जइसे आँखि में सुअंजन लगा के मने दिव्यदृष्टि पा के साधक अउर  सिद्ध लोग परबतन, जंगलन अउर धरती की भीतर कौतुहल से खजाना देखेला लोग।

ए दोहा की माध्यम से गोसाईं जी महराज के कहनाम इ बा की गुरु की कीरीपा से कुछ असंभव नइखे। गुरु के कीरीपा से अंतरात्मा जागि जाले, दिव्य-दृष्टि मिल जाले अउर ए दुनिया के भगत जब निहारेला त ओकरा बहुत कौतुहल होला....भगवान की लीला के साछात दरसन होला....त अगर ए दुनिया के जाने के बा, भगवान के जाने के बा त सतगुरु की चररन में जाहीं के परी अउर उहो सब घमंड, ग्यान आदि के दूर करत। जय-जय।
नमन गुरुदेव बजरंग बली हनुमान।

---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------


                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

शनिवार, 9 मार्च 2019

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के….( चौपाई)


उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4

भावार्थ:- ए चउपाई में भी गोस्वामीजी महराज अपनी पिछलहीं बाति के आगे बढ़ावत कहतानीं की उ जइसे ही हिरदय में परवेस करेला, वइसे ही हिरदय के निर्मल नेत्र खुल जाला, (कहले के मतलब ई बा की हिरदय सब विकारन से मुक्त हो जाला), अउर इ संसार रूपी जवन राति बा, अंधकार बा, ओकर जेतना भी दुख-दरद बा सब मिट जाला (कहले के मतलब इ बा की हिरदय की दिव्य होते ही सब दुख-दरद छूमंतर हो जाला, काहें की भगत ए संसार में रहत भी अपना के ए से परे क लेला, ओकरा पता चलि जाला की इ संसार छनबंगुर बा अउर माया बा।), अउर रामचरित रूपी जवन भी कीमती चीज बा, मणि-मानिक बा, उ केतनो छिपल काहें ना होखे, सब परकट हो जाला (कहले के मतलब इ बा की भगवान के रूप, गुण आदि के दरसन होखे लागेला, भगवान की बारे में जवन भी गुप्त बात बा, ओकर भान होखे लागेला।)।

गोसाईंजी महराज कवनो साधारन मनई ना रहनीं। भगवान राम, भगवान शिव अउर हनुमानजी की कीरिपा से उहां के दिव्य ग्यान हो गइल रहे, उहां के दिव्य-दृष्टि खुल गइल रहे।  उहां का रामायन की माध्यम से जवन भी बात कहले बानी अगर ओके वैग्यानिक भा तार्किक आधार पर सार्थक रूप से कसल जाव त उ सत-प्रतिसत खरा उतरी। खैर वइसे ज्ञान-विग्यान, तर्क पर अइले से पहिले ओ महानुभाव के अपनी घमंड के परे राखि के विचार करे के परी। सच में गोसाईंजी रामायन में धर्म-कर्म की साथे-साथे सार्थक जीवन के समेटि देले बानीं। हर चीज के, हर संबंधन के महत्ता प्रतिपादित क देले बानीं। अगर केहू खाली ए रामायन के आधार बना के आपन जीवन जीए त उ सदा सुखी रही अउर ओसे ए संसार के भी कल्यान होई। जय-जय।

---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------


                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

श्री गुर पद नख मनि गन जोती….( चौपाई)

श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3
भावार्थ:- ए हु चौपाई में भगवान राम के परम भक्त, महागियानी गोस्वामी तुलसीदासजी महराज सतगुरु की महत्ता के प्रतिपादित करत कह रहल बानीं की गुरुदेव की चररन की नोहन (नखन) से जवन जोती निकल रहल बा, उ प्रकासवान मनि की समान बा, पूरा तरे तेजोमय बा अउर खाली एके इयादी क लेहले मात्र से हिरदया में दिव्य-दृष्टि के समावेस हो जाला, हिरदय दिव्य परकास से भरि जाला। इ परकास अग्यान रूपी अंधेरा के नास करे वाला ह.....इ परकास जेकरी हिरदय में समा जाला, जेकर हिरदय ए परकास से भरि जाला, उ बहुते बड़भागी होला।

गोसाईं जी महराज ए चउपाई में भी परम गुरु, सत गुरु, (आत्मा अउर परमात्मा की बीच के कड़ी) के लौकिक सरीर की महत्ता के प्रतिपादित क रहल बानीं। गोसाईं जी कहतानी की खाली गुरुजी की नोहवने में एतना सक्ति बा की चेला के सही राह पर ले जाए में पूरा तरे समर्थ बा। गोसाईंजी कह रहल बानी की खाली ए नख (नोह) के इयाद क लेहले मात्र से भगत के दिव्य-दृष्टि के अनुभूति हो जाला।

गुरु के महत्ता अपरंपार बा। अब बताईं जवने गुरु की मात्र एगो नोह की स्मरण मात्र से अनपढ़, गँवार लेकिन सच्चा गुरुभक्त भगवान की एतना करीब हो जाला, ओकर दिव्य दृष्टि खुल जाला....अगर ओ गुरु के सच्चा आसिरबाद मिल जाव त केहू भी ए भवसागर से एकदम्मे पार हो जाई अउर ओकरा जीवन के, संसार के, भगवान के पूरा ग्यान हो जाई.....जय-जय। नमन गुरुदेव बजरंग बली हनुमान।


---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------

                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती….( चौपाई)


सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2 
भावार्थ:- इ जवन माटी बा, चरन-रज बा, उ पुन्यात्मा, पुन्य कर्मन के जनक भगवान भोलेनाथ की देहीं पर सोभामान निरमल बिभूति बा, इ पूरा तरे कल्यान की साथे-साथे आनंद के भी जननी बा, जनमदात्री बा, माई बा। एतने ना आगे गोस्वामी जी कहतानी की भगत के मन रूपी जवन दरपन बा, ओ पर जवन रहि-रहि के धूरि जमि जाला भा धूरि जमल बा, ओ धूरी के, ओ कबाड़ के, ओ धुधुलापन के हटावे वाला इ दिव्य दवाई बा, दिव्य सफाई करे वाली चीज बा, मार्जक बा, परिमार्जक बा....अउर एतने ना, एकर तिलक लगवले से अपनी आपे हर तरह के गुन आ जाला, भगत गुनन के खानि बनि जाला.....कहले के मतलब ई बा की गुरु की चरनिया के धूरि दिव्य बिया, सब सुखन के देबे वाला बिया।

अगर रउआँ आपन कल्यान कइल जाहतानी, भगवान सिरजित ए संसार में अपनी अइले के चरितार्थ कइल चाहतानीं त सतगुरु के अपना लीं। अगर रउआँ के खाली ओ सतगुरु की चरनन के धूरि भी नसीब हो जाई त रउआँ हर तरह से तरि जाइब, रउआँ बोध हो जाई अउर साथे-साथे राउर पूरा अंधकार, अग्यान मिट जाई आ रउआँ आपन भान हो जाई। जय-जय।

---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------

                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा….( चौपाई)


बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1 
भावार्थ:- हम गुरु महराज की चरन में लागल धूरि (माटी) के बंदना करतानी। (इ धूरी कवनो आम धूरी ना ह....इ त गुरु की चरन में लागि के अमृततुल्य हो गइल बा, ज्ञानमय हो गइल बा, दिव्य हो गइल बा।) इ धूरी परमानंद, परमसंतुस्ति देत स्वादमय, सुगंधमय अउर अनुरागमय हो गइल बा। इ संजीवनी बा, जवन सब इहलौकिक रोगन के नास क देला। जय-जय।

कहल गइल बा की गुरु, सतगुरु जवने राह से चलि जाला, ओ राह के माटी भी, उहां के आबोहवा भी बोधमय हो जाला, जागृत हो जाला, फेर उ आम माटी ना रही पूरा तरे ऊर्जावान हो जाला। उ माटी चंदन हो जाला। एइसन माटी में सांस लेहले में एगो अलगहीं परमानंद मिलेला। ए माटी में पूजा-पाठ के कईगुना फायदा मिलेगा काहें की ई माटी गुरु की चरनन से छुआ के दिव्य अनूभूति से भरि जाला।
---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------
                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

गुरुवार, 7 मार्च 2019

बंदउँ गुरु पद कंज.... (सोरठा-5)

सोरठा-

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥
भावार्थ:- गोसाईंजी महराज कहतानी की हम गुरु महराज की कमल रूपी चरनन के बंदना करतानीं। गुरु महराज त दया के सागर हईं अउर एतने ना, उहां का त मनई रूप में साक्छात भगवान बानीं, परमेश्वर बानीं। उहाँ के बाति, उहां के बचन सूरुज भगवान की किरनन के समूह बा, जवन महामोह रूपी घना अंधेरा के चुटकियन में मिटा देला। मने गुरुजी की संसर्ग में, छत्रछाया में शिष्य के मोह पूरा तरे समाप्त हो जाला अउर उ सत की, भगवान की अउर करीब हो जाला।

ध्यान दीं- सोरठा मात्रिक छंद हS मतलब मातरा पर आधारित होला नाकी अछरन पर। इ दोहा की ठीक उलटा होला मतलब एकरी पहिला अउरी तीसरा चरन में एगारह-एगारहगो मातरा होला जबकी दूसरा अउरी चउथा चरन में तेरS-तेरS गो।

आईं गुरुजी की कीरिपा से तनि गुरुजी पर अउर भी बात-बिचार क लेहल जाव

गुरु के महत्ता जगजाहिर बा। गुरु सच्चा मार्गदर्सक होला। जवनेगां एगो माई अपनी बचवन के राह देखावेले, पालि-पोसी के समाज में जीए के ढंग सीखावेले, गरमी-बरसात से बचावे ले ओहींगा गुरु जी भी अपनी चेलन के ममता की गोद में राखेने। अगर सच्चा गुरु मिलि गइनें त समझीं राउर जीवन के उध्धार हो गइल, राउर मनुज रूप सार्थक हो गइल, सच्चा गुरु की मिलले से खाली अपने उध्धार ना होला, अपने लाभ ना होला, अपितु मनई जवने सभा-समाज में रहेला, ओ सब के उद्धार हो जाला। देस में नेता, अगुआ भइले से जरूरी बा की अच्छा गुरु होखे लोग। अगर देस-समाज में अच्छा गुरु होई लोग त देस, समाज अपनी आपे सद विकास की मार्ग पर आगे बढ़त दुनिया के भी राह देखाई अउर पूरा विस में सुख-सांति के हवा बहे लागी। हमरा लागेला की कवनो भी समाज-देस की सही विकास खातिर इ जरूरी बा की सच्चा गुरु होखे लोग। अगर सच्चा गुरु होके लागी लोग त अपनी आपे देस में, समाज में अच्छा नेता, अच्छा इंजीनियर, अच्छा डक्टर आदी के संख्या बढ़े लागी।

गुरु की महत्ता के प्रतिपादित करत, गोस्वामी तुलसी दास महराज के एगो दोहा हम इहाँ देहल जाहबि –
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥

ए दोहा की माध्यम से परम रामभक्त तुलसीदास जी महराज कहतानी की हम ओ गुरुदेव महराज की चरनवा के बंदना करतानी जे किरिपा के समुंदर हईं कहे के मतलब इ बा कि उहाँ का सब पर आपन किरिपा बरसावत रहेनीं अउर उहाँ का मनई की रूप में साक्षात हरि (बिसनु भगवान) हईं। उहाँ के बचनिया घनघोर मोह रूपी घनघोर अन्धरिया के नास करे वाला सूरूज भगवान की किररन की समान बा। कहे के मतलब इ बा कि गुरुजी के बचनिया अपनी चेलन के माया-मोह में कबो ना फँसे देला हाँ पर एकरा खातिर गुरदेव महराज पर एकदम सरधाभक्ति होखे के चाहीं।

गुरु के महिमा अपरंपार बा। कहल जाला की सच्चा गुरु अपनी चेलन के सदा कल्यान क देला। अपनी चेलन के मोह-माया से निकालि के भगवान के दरसन करा देला। सब भारतीय संत लोग गुरु की महत्ता के गुनगान कइले में थकल नइखे लोग।

कबीर दासजी कहतानी की-
गुरु गोबिंद दोउ खड़ेकाको लागूँ पाँयबलिहारी गुरु आपनेगोबिंद दियो बताए।
उहाँ का आगे गुरु की महत्ता के प्रतिपादित करतगुरु के भगवान से भी श्रेष्ठ बतावन कहतानी की-कबिरा हरि की रूठते गुरु की सरनन जाएकह कबीर गुरु रूठते हरि नहीं होत सहाय।

एतने ना कहल गइल बा की,
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
जवने गुरु के एतना महिमा बाजवन गुरु के स्थान भगवान से भी बढ़ि के बाओ गुरु के हम सत-सत नमन करतानीबंदन करतानी।

पर सही गुरु माने सतगुरु उहे जे अपनी चेला के उद्धार करा दे। आज कल के गुरुजी लोगआपन खुदे कल्यान नइखे लोग क पावत अउर चेलन के भी अझुरवले रहता लोग। चेलन की आँख पर पट्टी हटावल त दूर अउर भी दु-चार गो पट्टी बाँधि देता लोग ताकि चेला सही चीज मति देखि पावो। आज के गुरु गुरु न होके अपना के भगवान सिध कइले में लागल बा लोग। जब हमनी जान केहू के आसिरबाद देनी जां चाहें लेनी जां त मन मेंदिल में इ धारना रहेला की भगवान भला करें पर गुरुजी लोग त भगवान की रूप में सैतान बनि के लोग के गलत रास्ता देखावता लोग। देखीं,केतने जाने संतबाबा लोग आपन त सर्वनास कइबे कइल लोगसाथे-साथे लोगसमाजदेस के नाव डुबा देहल लोग। संत के काम ह संतई कइल न की असंतई। लोग के राह देखावल न की लोग के भ्रमित कइल। खैर रउआँ खुदे समझदार बानीभगवान रउआँ के विवेक देले बाने। विवेक ए ही खातिर देले बाने की रउआँ सामने वाला के सुनींसम्मान करींओकरी बातन पर विस्वास करीं पर एकरी पहिले अपनी विवेक से तनि परखी लीं। भेड़िया धंसान कइले के ताक नइखेविवेक के उपयोग कइले के ताक बा। हम केतने जाने संत-महात्मा लोगन के देखले बानीजे चेला ना बनावे.... काहें की ओ लोगन के कहनाम बा की जब हम खुदे अबहिन भगवान के ना पा पवनि त तोहके कवनेगाँ भेंट करा पाइबि।

इहाँ हम पाठक लोगीं से एगो प्रार्थना करबिचिरउरी करबि की रउआँ सोंच-समझि के आपन गुरु बनाईंआज की समय में गुरु लोग गुरु न हो केगुरु-घंटाल बा लोगअपना के खुदे सर्वश्रेष्ठ बतावता लोगचेलन के माया-मोह से दूर करे केकल्यान करे के डिंग हाँकता लोग अउर खुदे माया-मोह में अझुराइल बा लोग। माई लछमी के सच्चा भगत बा लोग अउर ईश्वरीय आनंद के बाति करत त बा लोग पर खालि दिखावा की रूप मेंअपने त सांसारिक आनंद में लिपटल बा लोग। महँगा-महँगा गाड़ी में चलता लोग। खूब ऐसो-आराम फरमावता लोग। संत-महात्मा-बाबा लोग साधारन जीवन जीएलापर इ लोग त राजसी जीवन भोगता लोग। समाज के धर्म के कई भागन में बाँटि के रखि देले बा लोग। ए लोगन की वजह से धर्म भी बदनाम हो रहल बा। हम इ नइखीं कहत की रउआँ कवनो संत-बाबा के सनमान न करींश्रद्धा न राखीं पर सही संत के न की असंत के। अउर संत-असंत में पहिचान रउआँ तब्बे क पाइबि जब अपनी विवेक के उपयोग करबि। केतने लोग के देखले बानी की घरमें माई-बाप से झगड़ा करेला अउर संतन के चेला बनल फिरेला। अरे पहिले अपनी माई-बाप के सेवा क लींओ लोगन के खुस राखबि त भगवान अपनी आपे रउआँ पर परसन्न रहिहें।

हमार आप सबसे से बार-बार बिनती बा कि रउआँ खुदे सोंची की जवन आदमी आपन कल्यान नइखे क पावत ऊ राउर चाहें समाज के कल्यान कवनेगाँ करीत रउआँ से बार-बार बिनती बा की अपनी विवेक के उपयोग करीं। सही अउर गलत में फरक करींफेर देखीं दुनिया के अप्रतिम रूप रउरी सामने बारउआँ सदा परसन्न रहबि अउर समाज, देस के भी परसन्न राखबि।

जय जय राम, जय हनुमान।

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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

सोरठा- जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन.....

 सोरठा-


जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।

करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥

भावार्थ:- जेकर सुमिरन कइले से सबकुछ के सिद्धी होला, जे गणलोगन के मालिक हS अउरी जेकर मुँह श्रेस्ठ हाथी के हS। उ बुधी के रासी (बुधी के सागर) अउरी सुभ गुनन के धाम (सुभ गुनन के भंडार) हमरी पर किरीपा करें, हमरी पर आपन नेह बनवले रहें।


ए सोरठा में गोसाईंजी भगवान गनेस के बंदना करतानी। गनेसजी बुधी अउरी शुभ गुनन के समुंदर हईं मतलब बुधी अउरी सुभ गुन के मालिक हईं, दाता हईं। उहाँ की किरीपे से केहू भी बुधीमान हो सकेला चाहें ओकरी में सुभ गुन आ सकेला। अउरी रामायन जइसन एतना बड़हन ग्रंथ बिना गनेसजी की किरीपा से कइसे पूरा हो सकेला?


बोली सभें गनेश भगवान की जय।।


सोरठा मात्रिक छंद हS मतलब मातरा पर आधारित होला नाकी अछरन पर। इ दोहा की ठीक उलटा होला मतलब एकरी पहिला अउरी तीसरा चरन में एगारह-एगारहगो मातरा होला जबकी दूसरा अउरी चउथा चरन में तेरS-तेरS गो।


जय जय राम, जय हनुमान।

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 मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।

जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥



भावार्थ:- धन्य हो प्रभु। ए सोरठा में गोसाईं जी महराज कहतानी- जेकरी किरिपा से गूँगा (बउक) बक्ता हो जाला,  अउर लंगड़ मनई भी अगम्य (जहाँ जढ़ल बहुते मुस्किल होखे) पहाड़ पर चढ़ि जाला। उ भगवान, किरिपानिधान हमरी पर किरिपा करें काँहे कि उ कलिजुग की सब पापन से मुक्त करेवाला हउअन।

इहाँ हमरा कबीर दास के एगो साखी इयादि आवता-

साईं से सब होत है, बंदे ते कछु नाई,
राई से पर्वत करें, पर्वत राईमान।

कहले के मतलब इ बा की भगवाने की भइले सबकुछ बा अउर सबकुछ उहे करेने। हमनी पर, ए संसार पर उनहीं की किरिपा के आवसकता बा।

जेकरी किरिपा से बउका बोले, लगड़ा फाने पहाड़,
ओ किरिपा निधान के सदा-सदा जय जयकार।।

जय जय राम, जय हनुमान।

ओमममममममममममममममममममममममममममममममममममम

नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।

करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3॥

भावार्थ:- ए सोरठा में गोसाईंजी महराज भगवान बिस्नु से बिनती करतानी, उहाँ का कहतानी कि - जेकरी सरीरे के रंग नीलकमल की रंग के बा, मतलब नीला बरन वा, जेकर आँखि लाल कमल की समान बा। उ छीरसागर में सूत्तेवाला भगवान हमरी हिरदय में बिराजे, बास करें।

जय जय राम, जय हनुमान।

ओमममममममममममममममममममममममममममममममममममम

कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।

जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4॥ 

भावार्थ:- ए सोरठा में तुलसीदासजी महराज भगवान संकर से कहतानी की उहाँ का आपन किरिपा हमरी पर सदा बनवले रहीं- जेकर सरीर कुंद की फुल अउर चंदा मामा की समान बा, जे माई पार्वती की साथे बिहार करेला मतलब माई पार्वती जेकर अर्धांगिनी हई अउर जे करुना, दया के सागर ह, समुन्दर ह। जे सदा आपन नेह गरीबन पर बनवले रहेला, कामदेव के भी विनास करेवाला उ भगवान भोलेनाथ हमरी पर किरिपा करें।

जय जय राम, जय हनुमान।

ओमममममममममममममममममममममममममममममममममममम

भक्त प्रभाकर पाण्डेय "गोपालपुरिया"

क्रमशः...

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

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सोरठा-
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥

भावार्थ:- जेकर सुमिरन कइले से सबकुछ के सिद्धी होला, जे गणलोगन के मालिक हS अउरी जेकर मुँह श्रेस्ठ हाथी के हS। उ बुधी के रासी (बुधी के सागर) अउरी सुभ गुनन के धाम (सुभ गुनन के भंडार) हमरी पर किरीपा करें, हमरी पर आपन नेह बनवले रहें।
ए सोरठा में गोसाईंजी भगवान गनेस के बंदना करतानी। गनेसजी बुधी अउरी शुभ गुनन के समुंदर हईं मतलब बुधी अउरी सुभ गुन के मालिक हईं, दाता हईं। उहाँ की किरीपे से केहू भी बुधीमान हो सकेला चाहें ओकरी में सुभ गुन आ सकेला। अउरी रामायन जइसन एतना बड़हन ग्रंथ बिना गनेसजी की किरीपा से कइसे पूरा हो सकेला?
बोली सभें गनेश भगवान की जय।।
सोरठा मात्रिक छंद हS मतलब मातरा पर आधारित होला नाकी अछरन पर। इ दोहा की ठीक उलटा होला मतलब एकरी पहिला अउरी तीसरा चरन में एगारह-एगारहगो मातरा होला जबकी दूसरा अउरी चउथा चरन में तेरS-तेरS गो।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय


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नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥७॥

भावार्थ:- गोसाईंजी कहतानी की कइगो पुरान, बेद अउरी तंत्र की मोताबिक अउरी रामायन (बालमीकी रामायन) में कहलानुसार की संघे-संघे अउरी कई जगह कहल श्री रघुनाथजी की गाथा के हम अपनी आत्मिक सुख खातिर, अपनी सुख खातिर बहुते सुंदर भासा में बरनन करSतानीं।
ए इस्लोक में गोसाईंजी अस्पस्ट कही देलेबानीं की उहाँ की दवारा लिखल गइल इ रामायन उहाँ की अपनी दिमागे के उपज नाहीं हS, ना हीं उहाँ का कलपना कS के लिखलेबानी बलकी इ बेद, पुरान, बालमीकी रामायन आदी पर आधारित बा, ए तमाम ग्रंथन की मोताबिक बा। अउरी हाँ ए इस्लोक में गोसाईंजी भगवान राम की प्रति अपनी अथाह भगती के परिचय भी दे तानीं। उहाँ का इहाँ तक कहतानी की ए रामायन के रचना हम अपनी सुख खातिर करतानीं, अपनी आनन्द खातिर करतानीं अउरी हमार बस इहे कोसिस बा की एकर भासाई रचना सुंदर होखे।
इ इस्लोक ए बाती के सिध करता की तुलसी रामायन कवनो खेयाली कहानी नाहीं हS, इ बड़हन-बड़हन परमानिक ग्रंथन पर आधारित बा, ओ ग्रंथन की मोताबिक बा, खाली भाखा बदलल बा अउरी कहे के भाव।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय


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शनिवार, 6 दिसंबर 2008


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यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा

यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥६॥
भावार्थ:-
गोसाईंजी कहतानी की पूरा संसार, बरम्हा आदी देवता अउरी असुर जेकरी माया से बसीभूत बा, जेकरी माया में लिपटाइल बा, जेकरी सत्ता में इ लउकेवाला असत संसार ओहींगा सत परतीत होला जवनेंगा रसरी के देखी के साँपे के भरम होला। ए भवसागर से पार जाए के इच्छा रखेवाला के जेकर चरनवे एकमात्र नाई बुझाला, ए सगरी कारन की कारन राम कहायेवाला हम ओ भगवान हरि के बंदना करतानीं, उनकरी पाँव पड़तानी।
गोसाईंजी अपनी ए इस्लोक की माध्यम से जवन सबसे बड़हन बाती उजागर कइलेबानीं उ इ की रामे परमेस्वर हउअन, उहू ए परकिर्ती के करता-धरता हउँअन, सबमिलाजुला के उ भगवान (बिस्नु) के ही रूप हउअन, अवतार हउहन। पूरा इ दृस्य संसार उनकरी माया की कारन ही सत लागेला जबकि वास्तो में इ सत नइखे, क्षनभंगुर बा अउरी भगवाने की माया में खाली हमनियेजान नाहीं अपितु देवता, असुर भी लिपटाइल बा।
गोसाईंजी आगे लिखतानी की ग्यानीलोग ए संसार से, ए नासवान संसार से मुक्ति पावे खातिर सबसे बड़हन साधन भगवान की चरनिए के मानेलालोग मतलब अगर ए भवसागर से पार होखे के बा तs राम की सरन में, भगवान की सरन में जाए के ही परी नाहीं तS घूमीफिरी के एही भवसागर में माया में अझुराइल रहे के परी।
एही से ग्यानीलोग माया के ठगिनी कहेला अउरी सदा ओसे बचलेके उपाय खोजेला:-
माया महा ठगनी हम जानी। (कबीरदास)
दुनिया माया की पीछे भागेला अउरी माया भगवान की पीछे। हमनीजान खातिर इ दुनिया ही माया बा। जेई दिन हमनीजान माया की पीछे भागल छोड़ी के भगवान की पीछे भागे लागल जाई, ओईदिने से हमनीजान के भला हो जाई अउरी आसानी से ए भवसागर से छुटकारा मिली जाई।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।

सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥५॥


भावार्थ:- ए अस्लोक में गोसाईंजी जगत जननी जगदंबा माई सीता के बंदना करतानीं, उहाँ की पैर पड़तानी। गोसाईंजी कहतानी की पैदा करेवाली, पालन करेवाली (जीवन के बनाए रखेवाली) संहार करेवाली, दुख-दर्द हरेवाली अउरी सब कल्यान के करेवाली भगवान राम की बल्लभा (पतनी) माई सीता की आगे हम नतमस्तक हो तानी, उहाँ की पैर पड़तानी।
ए इस्लोक में जवन सबसे गवर करेवाली बात बा, उ इ की गोसाईंजी माई सीता के तीरीसक्ती मानतानीं। उहाँ का कहतानीं की माई सीते जगत के बनावेवाली, रछा करेवाली अउरी बिनास करनेवाली हई। सब दुख के दूर करेवाली भी उहे हई। कारन की सीता जी ओ परम ईस्वर के सक्ति हई, उ जगत जननी हई। जब-जब उ परम-पिता अवतार लेनें आ कवनो काम करेने तब-तब माई जगत-जननी के भी उनकी संघे आवे के परेला, उनकरी साथे रहे के परेला काहेंकि भगवान अपनी सक्ति की बिना पूरन नाहीं रहेने।
हाँ तs ए इस्लोक से इ सिध हो जाता की माई सीता साक्षात जगत जननी हई, आदि सक्ति हई चाहें कही सकेनी की ओही जगत जननी आदी सक्ति के रूप हई अउरी भगवान (राम) की लीला में सरीक होखे खातिर सीता की रूप में अवतरित भइली। जवनेगाँ भगवान के कईगो अवतार बा ओहींगा माई जगत जननी के भी कईगो अवतार बा ओही में से एगो रामावतार की संघे सीतावतार रहे। बोलीं सभे माई जगत जननी सीता माता की जय।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008


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सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।

वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥४॥


भावार्थ:- ए श्लोक में गोसाईंजी आदि कबी बालमीकीजी अउरी भगवान राम के परम भक्त हनुमानजी के बंदना करतानीं। उहाँ का कहतानी की हम माई जानकी अउरी प्रभो राम के गुनसमूह रूपी बन में आनंदित मन से फिरेवाला, घूमेवाला, खरा ग्यान (विशेष ग्यान) के जानकार कबिलोगन के सिरोमनी (कवीश्वर) श्री बालमीकीजी अउरी वानरलोगन में सर्वश्रेस्ठ (कपीश्वर) श्री हनुमानजी के बंदना करतानीं।
इहवाँ गोसाईंजी आदी कबी बालमीकीजी के एकदम खरा, सच्चा विसेस ग्यान में निपुन बतावतानीं। अउरी ए बाती के परमान ए ही से मिल जाला की संस्क्रित में सबसे पहिले रामायन बालमिकीएजी लिखनीं अउरी ए रामायन में ग्यान के पराकास्ठा बा। ग्यान के भंडार बा अउरी एही रामायन की आधार पर गोसाईंजी लोकभाखा अवधी में रामायन लिखनीं।
अउरी हाँ जब राम की चरीत के गुनगान होइ तS उहाँ के अनन्य भगत हनुमानजी कइसे छुटी सकेनीं। काँहे की कहल जाला जहवाँ भी राम के गुणगान होला उहवाँ हनुमानजी के बास होला। अउरी एगो कहानी की अनुसार गोसाईंजी के भगवान राम के पहिला दरसन हनुमानेजी की कीरीपा से भइल रहे; आईं इहो कहानी सुनी लेहल जाव-
जब तुलसीबाबा के भेंट हलुमानजी (हनुमानजी) से भइल तS हनुमानजी तुलसीबाबा से इ वादा कइनीं की हम तोहरा के भगवान राम के दरसन करा देइबी। पर बार-बार तुलसीबाबा की सामने भगवान राम जाँ पर तुलसीबाबा पहिचाने नाहीं पावें। एकदिन के बाती हS की चितरकूट की एगो घाटे पर संत लोग अपनी पूजा-पाठ में जुटल रहे लोग अउरी तुलसीबाबा चंनन खीसत रहने तब्बे भगवान राम लइका की रूप में उनकी लगे गइने अउरी लगने उनसे चंदन लगवावे। इकरी बाद तुलसीओबाबा आ लइका से अपनी लिलारे पर लगने चंनन लगवावे पर अबो तुलसीबाबा के इ भान नाहीं भइल की इ लइका भगवान रामें हउअन। हनुमानजी सोंचने की का उपाई करीं की तुलसीबाबा भगवान राम के पहिचान लें। हनुमानजी के फटाक से एगो बाती सुझल अउरी उ सुगा की बोली में बोलने-

चित्रकूट की घाट पर भइ संतन की भीर,
तुलसीदास चंनन घीसे, तिलक देत रघुवीर।

अब तुलसीदासजी छकी-छकी के भगवान राम के रूप रूपी अमरीत के पान कइनीं अउरी भगवाने में खो गइनीं।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥३॥


भावार्थ:- ए स्लोक में गोसाईं तुलसीदासजी भगवान संकर के बंदना करताने। अपनी ए बंदना में उ कहताने की हम बोधमय (ग्यान से भरल), नित (जेकर कबो नास ना होला यानि अबिनासी) संकर भगवान जइसन गुरु के बंदना करतानीं। जेकरी खाली आस्रय में चली गईले से टेढ़ चाँद भी हर जगह पूजनीय हो जाने।

इहाँ गोसाईंजी की कहले के मतलब इ बा की भगवान संकर एगो सच्चा गुरु की तरे सदा अपनी चेलन पर आपन नेह बनवले रहेने अउरी हरदम अच्छा राह देखावेने। भगवान संकर पर जे आपन सबकुछ छोड़ी देला ओकर सदा खातिर कल्यान हो जाला। जे उनकरी सरन में चली गइल उहो बढ़ाई के पात्र हो जाला चाहें ओकरी में लाखगो बुराई काहें नाहीं होखे।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय

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गुरुवार, 4 दिसंबर 2008


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भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥

भावार्थ- गोसाईंजी महराज ए श्लोक में लिखतानी की हम सरधा अउरी विस्वास के रूप माई पारबती अउरी भगवान शंकर के बंदना करतानीं। जेकरी बिना किरिपा के सिध पुरुस, महात्मा भी अपनी हिरदय में बिराजमान भगवान के नाहीं देखी सकेला लोग।
ए दूसरा श्लोक में गोसाईंजी सिउसक्ती के याद करतानी, उहाँ सब की पैर पड़तानी काहेंकि ओ सब की किरिपा से ही भगवान के सच्चा अनुभव हो सकेला अउरी दरसन हो सकेला। भगवान संकरे अउरी माई परबतिए सच्चा गुरु की तरे भगवान के पावे के रास्ता बता सकेला लोग। इहाँ एक बात अउर बा, उ इ की संकरे भगवान की प्रेरना से तुलसीदासजी रामायन लिखल सुरु कइनीं।

ए श्लोक में गोसाईंजी इहो एकदम अस्पस्ट क देले बानीं की भगवान तS सबकी हिरदय में बाने, बस उनके चिन्हले के जरुरत बा। ए प्रसंग पर हमरा कबीरदासजी के एगो दोहा यादी आवता-
मोको कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में, ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में,
खोजी होय तो तुरतहीं मिलिहें, सब साँसों की साँस में।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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बुधवार, 3 दिसंबर 2008

मंगलाचरण


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प्रथम सोपान : बालकांड

रामायन के पहिला कांड बालकांड हS। ए कांड में भगवान की जनम से लेके उनकरी बिआहे तक के बरनन कइल गइल बा।


श्लोक-

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥

भावार्थ- गोसाईं तुलसीदास जी महराज रामायन की सुरुआते में सबसे पहिले ब्रह्म रूपी अछर, सब अरथ, काव्य में रहेवाला सब रस , छंद की संघे -संघे सदा मंगल करेवाली सरस्वती अउरी गणेश जी के बंदना करताने।
इहवाँ बिचार करेवाली बात इ बा की बिना अछर, अरथ, रस, छंद आदि की बिना कवनो काव्य के रचने ना हो सकेला, मुँहे से बतिये ना निकल सकेला अउरी ए सब के मालिक तS सरसतिये माई अउरी गनेशेजी हउवे लोग। गनेशजी वइसे परथम पूज्यो मानल जाने अउरी हर परकार की बाधा के दूर करेवाला हउअन। ए सब कारन से गोसाईं जी परथम सलोके में इहाँ सब के बंदना कइले बानीं। काँहेकी इहाँ सब की किरिपा की बिना इ एतना बड़हन जगी पूरे ना हो सकेला।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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आरती श्रीरामायनजी की

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आरती श्रीरामायनजी की।
कीरति कलित ललित सिय पी की।।
गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद।
बालमीक बिग्यान बिसारद।।
सुक सनकादि सेष अरु सारद।
बरनि पवनसुत की‍रति नीकी।।
गावत बेद पुरान अष्टदस।
छओ सास्त्र सब ग्रंथन को रस।।
मुनि जन धन संतन को सरबस।
सार अंस संमत सबही की।।
गावत संतत संभु भवानी।
अरु घट संभव मुनि बिग्यानी।।
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी।
कागभुसुंडि गरुड के ही की।।
कलिमल हरनि बिषय रस फीकी।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की।।
दलन रोग भव मूरि अमी की।
तात मात सब बिधि तुलसी की।।
आरती श्रीरामायनजी की।
कीरति कलित ललित सिय पी की।।
ःःःःःःःःःःःःःः
बोली सभें रामायनजी की जय।।


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गोसाईं तुलसी दास

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रामायन के रचयिता तुलसीदासजी भगवान राम के परम भक्त रहनीं। इहाँका अपनी इष्टदेव भगवान राम की पावन चरित के घर-घर में पहुँचावे खातिर दिन-रात एक कS के राम चरित मानस (रामायन) के रचना मूल अवधी भासा में कइनीं। गोसाईंजी की पहिलहुँ बालमीकीजी द्वारा रचित रामायन
उपलब्ध रहे (अउरी अबो बा) पर उ संसक्रित में रहे। अउरी ओहु समय कम लोग संसक्रित समझे। ए कारन से राम के इ पावन अनुकरनीय चरित आम जनता की पहुँच से बाहर रहे। गोसाईं जी अवधी यानि आम आदमी की भासा में ई ग्रंथ लिखी के ए के घर-घर में पहुँचा देहनीं अउरी ए ग्रंथ की संघे-संघे जनता जनार्दन उहों के भक्त हो गइल। गोसाईंजी ए ग्रंथ के रचना एतना सीधा, सरल अउरी मिठऊ भासा में कइनीं, ए में एतना रस भरी देहने की बार-बार पढ़ले-सुनले की बादो सुनवइया आ कहवइया के आनन्द बढ़ते जाला अउरी ओकरा ए कथा से कबो पेट नाहीं भरेला। जे एक बार ए कथा के सरवन कS ले ला उ बार-बार ए कथा के सुनल चाहेला। गोसाईंजी ए ग्रंथ की अलावा अउरियो कईगो ग्रंथ लिखनीं।
अब आईं सभें तनी संछेप में गोसाईं जी की बारे में कुछ अउर जानी लेहल जाव।
गोसाईंजी के जनम राजापुर नामक गाँव में एक बाभन परिवार में संबत 1554 में सावन की अँजोरिया में सतमी के भइल रहे। इहाँ की माता के नाव हुलसी अउरी पिता के नाव आत्माराम दूबे रहे। एइसन कथा मिलेला की जनमते इहाँ के माई-बाप इहाँ के तेयागी देहल।
धीरे-धीरे गोसाईंजी बड़हन होखे लगनीं अउरी इहाँ के भेंट नरहरीदास से भइल अउरी नरहरी जी इहाँ के नाव रामबोला रखी देहनीं। ओकरी बाद नरहरीजी इहाँ के लेके अजोध्या गइनी अउरी उहवें गोसाईंजी के जनेऊ भइल।
आगे चली के गोसाईंजी के भेंट हनुमानजी से भइल अउरी हनुमानजी की किरीपा से गोसाईंजी भगवान राम के दरसन कइनीं।
संबत 1680 में इ महान संत सिरोमनि अपनी आत्मा के ब्रह्मलीन कS लेहनीं।
बोली सभें गोसाईं तुलसीदास महराज की जय।


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तुलसी रामायन


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राम-राम पाठक महानुभाव लोगीं। तुलसी रामायन में रउआँ सब के तुलसी के रामायन ही पढ़े के मिली पर जवन ओकर भावार्थ रही उ रही भोजपुरी में। काँहे की हमार इ इच्छा बा की भोजपुरिया जनता जनारदन रामायन के भावार्थ रूपी अमरित के रसासवादन अपनी भासा में करो। ए से हमरा जवन सबसे बड़हन फायदा होई उ इ की हम रामायन के भावार्थ भोजपुरी में लिखी के भोजपुरी के समरीद्ध कइले की साथे-साथे भगवानो की लीला रूपी अमरीत के छक-छक के पीयबी अउरी इ अमरीत भोजपुरिया जनता जनारदन के ओकरी भासा रूपी बरतन में पिए खातिर ढारी-ढारी के देइब। हमरा पूरा बिस्वास बा की ए महाजगी में रउरा सभ के पूरा सहयोग अउरी आसिरबाद हमरा के मिली। समय-समय पर आप सब के बिचार-सुझाव हमके रास्ता देखाई। बहुत-बहुत धनबाद आप सबके।

राउर सेवक-
प्रभाकर गोपालपुरिया

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