जथा
सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक
देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥
भावार्थ:- गोस्वामीजी महराज ए दोहा में कहतानी की जइसे आँखि में सुअंजन लगा के मने
दिव्यदृष्टि पा के साधक अउर सिद्ध लोग
परबतन, जंगलन अउर धरती की भीतर कौतुहल से खजाना देखेला लोग।
ए दोहा की माध्यम से गोसाईं जी महराज के कहनाम इ बा
की गुरु की कीरीपा से कुछ असंभव नइखे। गुरु के कीरीपा से अंतरात्मा जागि जाले,
दिव्य-दृष्टि मिल जाले अउर ए दुनिया के भगत जब निहारेला त ओकरा बहुत कौतुहल
होला....भगवान की लीला के साछात दरसन होला....त अगर ए दुनिया के जाने के बा, भगवान
के जाने के बा त सतगुरु की चररन में जाहीं के परी अउर उहो सब घमंड, ग्यान आदि के
दूर करत। जय-जय।
नमन गुरुदेव बजरंग बली हनुमान।
---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------
हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया
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