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रविवार, 10 मार्च 2019

जथा सुअंजन अंजि दृग….(दोहा)

जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1

भावार्थ:- गोस्वामीजी महराज ए दोहा में कहतानी की जइसे आँखि में सुअंजन लगा के मने दिव्यदृष्टि पा के साधक अउर  सिद्ध लोग परबतन, जंगलन अउर धरती की भीतर कौतुहल से खजाना देखेला लोग।

ए दोहा की माध्यम से गोसाईं जी महराज के कहनाम इ बा की गुरु की कीरीपा से कुछ असंभव नइखे। गुरु के कीरीपा से अंतरात्मा जागि जाले, दिव्य-दृष्टि मिल जाले अउर ए दुनिया के भगत जब निहारेला त ओकरा बहुत कौतुहल होला....भगवान की लीला के साछात दरसन होला....त अगर ए दुनिया के जाने के बा, भगवान के जाने के बा त सतगुरु की चररन में जाहीं के परी अउर उहो सब घमंड, ग्यान आदि के दूर करत। जय-जय।
नमन गुरुदेव बजरंग बली हनुमान।

---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------


                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

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