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सोमवार, 8 दिसंबर 2008


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नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥७॥

भावार्थ:- गोसाईंजी कहतानी की कइगो पुरान, बेद अउरी तंत्र की मोताबिक अउरी रामायन (बालमीकी रामायन) में कहलानुसार की संघे-संघे अउरी कई जगह कहल श्री रघुनाथजी की गाथा के हम अपनी आत्मिक सुख खातिर, अपनी सुख खातिर बहुते सुंदर भासा में बरनन करSतानीं।
ए इस्लोक में गोसाईंजी अस्पस्ट कही देलेबानीं की उहाँ की दवारा लिखल गइल इ रामायन उहाँ की अपनी दिमागे के उपज नाहीं हS, ना हीं उहाँ का कलपना कS के लिखलेबानी बलकी इ बेद, पुरान, बालमीकी रामायन आदी पर आधारित बा, ए तमाम ग्रंथन की मोताबिक बा। अउरी हाँ ए इस्लोक में गोसाईंजी भगवान राम की प्रति अपनी अथाह भगती के परिचय भी दे तानीं। उहाँ का इहाँ तक कहतानी की ए रामायन के रचना हम अपनी सुख खातिर करतानीं, अपनी आनन्द खातिर करतानीं अउरी हमार बस इहे कोसिस बा की एकर भासाई रचना सुंदर होखे।
इ इस्लोक ए बाती के सिध करता की तुलसी रामायन कवनो खेयाली कहानी नाहीं हS, इ बड़हन-बड़हन परमानिक ग्रंथन पर आधारित बा, ओ ग्रंथन की मोताबिक बा, खाली भाखा बदलल बा अउरी कहे के भाव।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय


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