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शुक्रवार, 8 मार्च 2019

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती….( चौपाई)


सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2 
भावार्थ:- इ जवन माटी बा, चरन-रज बा, उ पुन्यात्मा, पुन्य कर्मन के जनक भगवान भोलेनाथ की देहीं पर सोभामान निरमल बिभूति बा, इ पूरा तरे कल्यान की साथे-साथे आनंद के भी जननी बा, जनमदात्री बा, माई बा। एतने ना आगे गोस्वामी जी कहतानी की भगत के मन रूपी जवन दरपन बा, ओ पर जवन रहि-रहि के धूरि जमि जाला भा धूरि जमल बा, ओ धूरी के, ओ कबाड़ के, ओ धुधुलापन के हटावे वाला इ दिव्य दवाई बा, दिव्य सफाई करे वाली चीज बा, मार्जक बा, परिमार्जक बा....अउर एतने ना, एकर तिलक लगवले से अपनी आपे हर तरह के गुन आ जाला, भगत गुनन के खानि बनि जाला.....कहले के मतलब ई बा की गुरु की चरनिया के धूरि दिव्य बिया, सब सुखन के देबे वाला बिया।

अगर रउआँ आपन कल्यान कइल जाहतानी, भगवान सिरजित ए संसार में अपनी अइले के चरितार्थ कइल चाहतानीं त सतगुरु के अपना लीं। अगर रउआँ के खाली ओ सतगुरु की चरनन के धूरि भी नसीब हो जाई त रउआँ हर तरह से तरि जाइब, रउआँ बोध हो जाई अउर साथे-साथे राउर पूरा अंधकार, अग्यान मिट जाई आ रउआँ आपन भान हो जाई। जय-जय।

---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------

                                          हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया

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