सुकृति
संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
भावार्थ:- इ जवन माटी
बा, चरन-रज बा, उ पुन्यात्मा, पुन्य कर्मन के जनक भगवान भोलेनाथ की देहीं पर
सोभामान निरमल बिभूति बा, इ पूरा तरे कल्यान की साथे-साथे आनंद के भी जननी बा,
जनमदात्री बा, माई बा। एतने ना आगे गोस्वामी जी कहतानी की भगत के मन रूपी जवन दरपन
बा, ओ पर जवन रहि-रहि के धूरि जमि जाला भा धूरि जमल बा, ओ धूरी के, ओ कबाड़ के, ओ धुधुलापन के
हटावे वाला इ दिव्य दवाई बा, दिव्य सफाई करे वाली चीज बा, मार्जक बा, परिमार्जक बा....अउर एतने ना, एकर तिलक
लगवले से अपनी आपे हर तरह के गुन आ जाला, भगत गुनन के खानि बनि जाला.....कहले के
मतलब ई बा की गुरु की चरनिया के धूरि दिव्य बिया, सब सुखन के देबे वाला बिया।
अगर रउआँ आपन
कल्यान कइल जाहतानी, भगवान सिरजित ए संसार में अपनी अइले के चरितार्थ कइल चाहतानीं
त सतगुरु के अपना लीं। अगर रउआँ के खाली ओ सतगुरु की चरनन के धूरि भी नसीब हो जाई
त रउआँ हर तरह से तरि जाइब, रउआँ बोध हो जाई अउर साथे-साथे राउर पूरा अंधकार,
अग्यान मिट जाई आ रउआँ आपन भान हो जाई। जय-जय।
---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------
हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया
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