बंदऊँ
गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
भावार्थ:- हम गुरु महराज की चरन में लागल धूरि (माटी) के बंदना
करतानी। (इ धूरी कवनो आम धूरी ना ह....इ त गुरु की चरन में लागि के अमृततुल्य हो
गइल बा, ज्ञानमय हो गइल बा, दिव्य हो गइल बा।) इ धूरी परमानंद, परमसंतुस्ति देत स्वादमय, सुगंधमय
अउर अनुरागमय हो गइल बा। इ संजीवनी बा, जवन सब इहलौकिक रोगन के नास क देला। जय-जय।
कहल गइल बा की गुरु,
सतगुरु जवने राह से चलि जाला, ओ राह के माटी भी, उहां के आबोहवा भी बोधमय हो जाला,
जागृत हो जाला, फेर उ आम माटी ना रही पूरा तरे ऊर्जावान हो जाला। उ माटी चंदन हो
जाला। एइसन माटी में सांस लेहले में एगो अलगहीं परमानंद मिलेला। ए माटी में
पूजा-पाठ के कईगुना फायदा मिलेगा काहें की ई माटी गुरु की चरनन से छुआ के दिव्य
अनूभूति से भरि जाला।
---------श्री राम, जय राम, जय-जय राम। जय-जय विघ्नहरण हनुमान-------
हनुमान भक्त प्रभाकर गोपालपुरिया
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