गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
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भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥
भावार्थ- गोसाईंजी महराज ए श्लोक में लिखतानी की हम सरधा अउरी विस्वास के रूप माई पारबती अउरी भगवान शंकर के बंदना करतानीं। जेकरी बिना किरिपा के सिध पुरुस, महात्मा भी अपनी हिरदय में बिराजमान भगवान के नाहीं देखी सकेला लोग।
ए दूसरा श्लोक में गोसाईंजी सिउसक्ती के याद करतानी, उहाँ सब की पैर पड़तानी काहेंकि ओ सब की किरिपा से ही भगवान के सच्चा अनुभव हो सकेला अउरी दरसन हो सकेला। भगवान संकरे अउरी माई परबतिए सच्चा गुरु की तरे भगवान के पावे के रास्ता बता सकेला लोग। इहाँ एक बात अउर बा, उ इ की संकरे भगवान की प्रेरना से तुलसीदासजी रामायन लिखल सुरु कइनीं।
ए श्लोक में गोसाईंजी इहो एकदम अस्पस्ट क देले बानीं की भगवान तS सबकी हिरदय में बाने, बस उनके चिन्हले के जरुरत बा। ए प्रसंग पर हमरा कबीरदासजी के एगो दोहा यादी आवता-
मोको कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में, ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में,
खोजी होय तो तुरतहीं मिलिहें, सब साँसों की साँस में।
जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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बालकाण्ड (मंगलाचरण)
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