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बुधवार, 3 दिसंबर 2008

गोसाईं तुलसी दास

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रामायन के रचयिता तुलसीदासजी भगवान राम के परम भक्त रहनीं। इहाँका अपनी इष्टदेव भगवान राम की पावन चरित के घर-घर में पहुँचावे खातिर दिन-रात एक कS के राम चरित मानस (रामायन) के रचना मूल अवधी भासा में कइनीं। गोसाईंजी की पहिलहुँ बालमीकीजी द्वारा रचित रामायन
उपलब्ध रहे (अउरी अबो बा) पर उ संसक्रित में रहे। अउरी ओहु समय कम लोग संसक्रित समझे। ए कारन से राम के इ पावन अनुकरनीय चरित आम जनता की पहुँच से बाहर रहे। गोसाईं जी अवधी यानि आम आदमी की भासा में ई ग्रंथ लिखी के ए के घर-घर में पहुँचा देहनीं अउरी ए ग्रंथ की संघे-संघे जनता जनार्दन उहों के भक्त हो गइल। गोसाईंजी ए ग्रंथ के रचना एतना सीधा, सरल अउरी मिठऊ भासा में कइनीं, ए में एतना रस भरी देहने की बार-बार पढ़ले-सुनले की बादो सुनवइया आ कहवइया के आनन्द बढ़ते जाला अउरी ओकरा ए कथा से कबो पेट नाहीं भरेला। जे एक बार ए कथा के सरवन कS ले ला उ बार-बार ए कथा के सुनल चाहेला। गोसाईंजी ए ग्रंथ की अलावा अउरियो कईगो ग्रंथ लिखनीं।
अब आईं सभें तनी संछेप में गोसाईं जी की बारे में कुछ अउर जानी लेहल जाव।
गोसाईंजी के जनम राजापुर नामक गाँव में एक बाभन परिवार में संबत 1554 में सावन की अँजोरिया में सतमी के भइल रहे। इहाँ की माता के नाव हुलसी अउरी पिता के नाव आत्माराम दूबे रहे। एइसन कथा मिलेला की जनमते इहाँ के माई-बाप इहाँ के तेयागी देहल।
धीरे-धीरे गोसाईंजी बड़हन होखे लगनीं अउरी इहाँ के भेंट नरहरीदास से भइल अउरी नरहरी जी इहाँ के नाव रामबोला रखी देहनीं। ओकरी बाद नरहरीजी इहाँ के लेके अजोध्या गइनी अउरी उहवें गोसाईंजी के जनेऊ भइल।
आगे चली के गोसाईंजी के भेंट हनुमानजी से भइल अउरी हनुमानजी की किरीपा से गोसाईंजी भगवान राम के दरसन कइनीं।
संबत 1680 में इ महान संत सिरोमनि अपनी आत्मा के ब्रह्मलीन कS लेहनीं।
बोली सभें गोसाईं तुलसीदास महराज की जय।


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