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सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥४॥
भावार्थ:- ए श्लोक में गोसाईंजी आदि कबी बालमीकीजी अउरी भगवान राम के परम भक्त हनुमानजी के बंदना करतानीं। उहाँ का कहतानी की हम माई जानकी अउरी प्रभो राम के गुनसमूह रूपी बन में आनंदित मन से फिरेवाला, घूमेवाला, खरा ग्यान (विशेष ग्यान) के जानकार कबिलोगन के सिरोमनी (कवीश्वर) श्री बालमीकीजी अउरी वानरलोगन में सर्वश्रेस्ठ (कपीश्वर) श्री हनुमानजी के बंदना करतानीं।
इहवाँ गोसाईंजी आदी कबी बालमीकीजी के एकदम खरा, सच्चा विसेस ग्यान में निपुन बतावतानीं। अउरी ए बाती के परमान ए ही से मिल जाला की संस्क्रित में सबसे पहिले रामायन बालमिकीएजी लिखनीं अउरी ए रामायन में ग्यान के पराकास्ठा बा। ग्यान के भंडार बा अउरी एही रामायन की आधार पर गोसाईंजी लोकभाखा अवधी में रामायन लिखनीं।
अउरी हाँ जब राम की चरीत के गुनगान होइ तS उहाँ के अनन्य भगत हनुमानजी कइसे छुटी सकेनीं। काँहे की कहल जाला जहवाँ भी राम के गुणगान होला उहवाँ हनुमानजी के बास होला। अउरी एगो कहानी की अनुसार गोसाईंजी के भगवान राम के पहिला दरसन हनुमानेजी की कीरीपा से भइल रहे; आईं इहो कहानी सुनी लेहल जाव-
जब तुलसीबाबा के भेंट हलुमानजी (हनुमानजी) से भइल तS हनुमानजी तुलसीबाबा से इ वादा कइनीं की हम तोहरा के भगवान राम के दरसन करा देइबी। पर बार-बार तुलसीबाबा की सामने भगवान राम जाँ पर तुलसीबाबा पहिचाने नाहीं पावें। एकदिन के बाती हS की चितरकूट की एगो घाटे पर संत लोग अपनी पूजा-पाठ में जुटल रहे लोग अउरी तुलसीबाबा चंनन खीसत रहने तब्बे भगवान राम लइका की रूप में उनकी लगे गइने अउरी लगने उनसे चंदन लगवावे। इकरी बाद तुलसीओबाबा आ लइका से अपनी लिलारे पर लगने चंनन लगवावे पर अबो तुलसीबाबा के इ भान नाहीं भइल की इ लइका भगवान रामें हउअन। हनुमानजी सोंचने की का उपाई करीं की तुलसीबाबा भगवान राम के पहिचान लें। हनुमानजी के फटाक से एगो बाती सुझल अउरी उ सुगा की बोली में बोलने-
चित्रकूट की घाट पर भइ संतन की भीर,
तुलसीदास चंनन घीसे, तिलक देत रघुवीर।
अब तुलसीदासजी छकी-छकी के भगवान राम के रूप रूपी अमरीत के पान कइनीं अउरी भगवाने में खो गइनीं।
जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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इहवाँ गोसाईंजी आदी कबी बालमीकीजी के एकदम खरा, सच्चा विसेस ग्यान में निपुन बतावतानीं। अउरी ए बाती के परमान ए ही से मिल जाला की संस्क्रित में सबसे पहिले रामायन बालमिकीएजी लिखनीं अउरी ए रामायन में ग्यान के पराकास्ठा बा। ग्यान के भंडार बा अउरी एही रामायन की आधार पर गोसाईंजी लोकभाखा अवधी में रामायन लिखनीं।
अउरी हाँ जब राम की चरीत के गुनगान होइ तS उहाँ के अनन्य भगत हनुमानजी कइसे छुटी सकेनीं। काँहे की कहल जाला जहवाँ भी राम के गुणगान होला उहवाँ हनुमानजी के बास होला। अउरी एगो कहानी की अनुसार गोसाईंजी के भगवान राम के पहिला दरसन हनुमानेजी की कीरीपा से भइल रहे; आईं इहो कहानी सुनी लेहल जाव-
जब तुलसीबाबा के भेंट हलुमानजी (हनुमानजी) से भइल तS हनुमानजी तुलसीबाबा से इ वादा कइनीं की हम तोहरा के भगवान राम के दरसन करा देइबी। पर बार-बार तुलसीबाबा की सामने भगवान राम जाँ पर तुलसीबाबा पहिचाने नाहीं पावें। एकदिन के बाती हS की चितरकूट की एगो घाटे पर संत लोग अपनी पूजा-पाठ में जुटल रहे लोग अउरी तुलसीबाबा चंनन खीसत रहने तब्बे भगवान राम लइका की रूप में उनकी लगे गइने अउरी लगने उनसे चंदन लगवावे। इकरी बाद तुलसीओबाबा आ लइका से अपनी लिलारे पर लगने चंनन लगवावे पर अबो तुलसीबाबा के इ भान नाहीं भइल की इ लइका भगवान रामें हउअन। हनुमानजी सोंचने की का उपाई करीं की तुलसीबाबा भगवान राम के पहिचान लें। हनुमानजी के फटाक से एगो बाती सुझल अउरी उ सुगा की बोली में बोलने-
चित्रकूट की घाट पर भइ संतन की भीर,
तुलसीदास चंनन घीसे, तिलक देत रघुवीर।
अब तुलसीदासजी छकी-छकी के भगवान राम के रूप रूपी अमरीत के पान कइनीं अउरी भगवाने में खो गइनीं।
जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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