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सोरठा-
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥
भावार्थ:- जेकर सुमिरन कइले से सबकुछ के सिद्धी होला, जे गणलोगन के मालिक हS अउरी जेकर मुँह श्रेस्ठ हाथी के हS। उ बुधी के रासी (बुधी के सागर) अउरी सुभ गुनन के धाम (सुभ गुनन के भंडार) हमरी पर किरीपा करें, हमरी पर आपन नेह बनवले रहें।
ए सोरठा में गोसाईंजी भगवान गनेस के बंदना करतानी। गनेसजी बुधी अउरी शुभ गुनन के समुंदर हईं मतलब बुधी अउरी सुभ गुन के मालिक हईं, दाता हईं। उहाँ की किरीपे से केहू भी बुधीमान हो सकेला चाहें ओकरी में सुभ गुन आ सकेला। अउरी रामायन जइसन एतना बड़हन ग्रंथ बिना गनेसजी की किरीपा से कइसे पूरा हो सकेला?
बोली सभें गनेश भगवान की जय।।
सोरठा मात्रिक छंद हS मतलब मातरा पर आधारित होला नाकी अछरन पर। इ दोहा की ठीक उलटा होला मतलब एकरी पहिला अउरी तीसरा चरन में एगारह-एगारहगो मातरा होला जबकी दूसरा अउरी चउथा चरन में तेरS-तेरS गो।
जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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ए सोरठा में गोसाईंजी भगवान गनेस के बंदना करतानी। गनेसजी बुधी अउरी शुभ गुनन के समुंदर हईं मतलब बुधी अउरी सुभ गुन के मालिक हईं, दाता हईं। उहाँ की किरीपे से केहू भी बुधीमान हो सकेला चाहें ओकरी में सुभ गुन आ सकेला। अउरी रामायन जइसन एतना बड़हन ग्रंथ बिना गनेसजी की किरीपा से कइसे पूरा हो सकेला?
बोली सभें गनेश भगवान की जय।।
सोरठा मात्रिक छंद हS मतलब मातरा पर आधारित होला नाकी अछरन पर। इ दोहा की ठीक उलटा होला मतलब एकरी पहिला अउरी तीसरा चरन में एगारह-एगारहगो मातरा होला जबकी दूसरा अउरी चउथा चरन में तेरS-तेरS गो।
जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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4 टिप्पणियां:
प्रिय प्रभाकर जी,
आपका रामचरित मानस चिटठा पढ़कर बहुत ही हर्ष हुआ. प्रभु से मेरी ये विनती है कि आप का ये प्रयास ढेर सारे लोगों तक पहुंचे. आप जैसे ही गुनी जनो से प्रेरणा ले कर मैंने अवधी भाषा का (शायद) पहला चिटठा http://अवधीअनुराग.ब्लॉगस्पॉट.कॉम लिखना शुरू किया है.
मैं इसे और बढ़िया तथा और उपयोगी कैसे बना सकता हूँ इस विषय पर आपके विचार और सुझाव पाने को लालायित,
अनुराग.
राम राम प्रभाकर भाई ,मेरे दोनों ब्लॉग का भ्रमण करने के लिए धन्यवाद ,फिर आइयेगा ,हम इंतज़ार करेंगे ,तब तक हम रामायण पढेंगे ,भोजपूरी अच्छा लिख रहे हैं आप ,अभी मैंने जो दवा पर लेख लिखा है ,उसे पढा आपने ,हनुमान जी की संजीवनी है वो
लाजवाब है आपकी साधना. ब्लॉग का ऐसा सार्थक उपयोग कम ही देखा है.
तुलसी दास जी एक बार शौच करने गये एक पेढ के नीचे और वहां पेड पर एक उल्टा लटका हूवा भुत देखा। तुलसी दासजी उस भुत से पुछ रहे है, भाई राम कैसे मीलेंगे ? भुत बिचारा तुलसी दास जी से कह रहा है " मै तूम्हारे सामने उल्टा लटक रहा हुं पेड पर देख रहे हो " तूम अपने मन से पुछो अर्थात इस संसार से उब गये तो, इस जड मायारुप मरुभूमि संसार से हटा हुवा हणमन से पूछे वे बताएंगे राम अर्थात प्राण भरपुर कहां मिलेंगा ! और मै तो पंच महाभूत से बना शरीर हुं और देख रहां हुं के तुम यहां शौच करके पेड को पोष रहे हो और पेड इस प्रकृति के आधार पर तूम्हे पोष रहा है। अब यह क्या बात हूयी के तुम पंच महाभूत वाले शरीर से ही प्रश्न करने लगे ? अपने मन से पूछे राम रुपी प्राण ह्रदय में सदा भरपुर कैसे रहेगा ? जब समझ बढेगी राम की तो तूँ लक्ष राम और मै लक्ष दास दोनो मील जाएंगे और यह बात भी समझ आजाएगी चित्रकुट के घाट पर, भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घीसे, तिलक देत रघुवीर।। धन्यवाद। शुभ प्रभात।
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