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सोमवार, 8 दिसंबर 2008

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सोरठा-
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥

भावार्थ:- जेकर सुमिरन कइले से सबकुछ के सिद्धी होला, जे गणलोगन के मालिक हS अउरी जेकर मुँह श्रेस्ठ हाथी के हS। उ बुधी के रासी (बुधी के सागर) अउरी सुभ गुनन के धाम (सुभ गुनन के भंडार) हमरी पर किरीपा करें, हमरी पर आपन नेह बनवले रहें।
ए सोरठा में गोसाईंजी भगवान गनेस के बंदना करतानी। गनेसजी बुधी अउरी शुभ गुनन के समुंदर हईं मतलब बुधी अउरी सुभ गुन के मालिक हईं, दाता हईं। उहाँ की किरीपे से केहू भी बुधीमान हो सकेला चाहें ओकरी में सुभ गुन आ सकेला। अउरी रामायन जइसन एतना बड़हन ग्रंथ बिना गनेसजी की किरीपा से कइसे पूरा हो सकेला?
बोली सभें गनेश भगवान की जय।।
सोरठा मात्रिक छंद हS मतलब मातरा पर आधारित होला नाकी अछरन पर। इ दोहा की ठीक उलटा होला मतलब एकरी पहिला अउरी तीसरा चरन में एगारह-एगारहगो मातरा होला जबकी दूसरा अउरी चउथा चरन में तेरS-तेरS गो।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय


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नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥७॥

भावार्थ:- गोसाईंजी कहतानी की कइगो पुरान, बेद अउरी तंत्र की मोताबिक अउरी रामायन (बालमीकी रामायन) में कहलानुसार की संघे-संघे अउरी कई जगह कहल श्री रघुनाथजी की गाथा के हम अपनी आत्मिक सुख खातिर, अपनी सुख खातिर बहुते सुंदर भासा में बरनन करSतानीं।
ए इस्लोक में गोसाईंजी अस्पस्ट कही देलेबानीं की उहाँ की दवारा लिखल गइल इ रामायन उहाँ की अपनी दिमागे के उपज नाहीं हS, ना हीं उहाँ का कलपना कS के लिखलेबानी बलकी इ बेद, पुरान, बालमीकी रामायन आदी पर आधारित बा, ए तमाम ग्रंथन की मोताबिक बा। अउरी हाँ ए इस्लोक में गोसाईंजी भगवान राम की प्रति अपनी अथाह भगती के परिचय भी दे तानीं। उहाँ का इहाँ तक कहतानी की ए रामायन के रचना हम अपनी सुख खातिर करतानीं, अपनी आनन्द खातिर करतानीं अउरी हमार बस इहे कोसिस बा की एकर भासाई रचना सुंदर होखे।
इ इस्लोक ए बाती के सिध करता की तुलसी रामायन कवनो खेयाली कहानी नाहीं हS, इ बड़हन-बड़हन परमानिक ग्रंथन पर आधारित बा, ओ ग्रंथन की मोताबिक बा, खाली भाखा बदलल बा अउरी कहे के भाव।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय


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शनिवार, 6 दिसंबर 2008


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यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा

यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥६॥
भावार्थ:-
गोसाईंजी कहतानी की पूरा संसार, बरम्हा आदी देवता अउरी असुर जेकरी माया से बसीभूत बा, जेकरी माया में लिपटाइल बा, जेकरी सत्ता में इ लउकेवाला असत संसार ओहींगा सत परतीत होला जवनेंगा रसरी के देखी के साँपे के भरम होला। ए भवसागर से पार जाए के इच्छा रखेवाला के जेकर चरनवे एकमात्र नाई बुझाला, ए सगरी कारन की कारन राम कहायेवाला हम ओ भगवान हरि के बंदना करतानीं, उनकरी पाँव पड़तानी।
गोसाईंजी अपनी ए इस्लोक की माध्यम से जवन सबसे बड़हन बाती उजागर कइलेबानीं उ इ की रामे परमेस्वर हउअन, उहू ए परकिर्ती के करता-धरता हउँअन, सबमिलाजुला के उ भगवान (बिस्नु) के ही रूप हउअन, अवतार हउहन। पूरा इ दृस्य संसार उनकरी माया की कारन ही सत लागेला जबकि वास्तो में इ सत नइखे, क्षनभंगुर बा अउरी भगवाने की माया में खाली हमनियेजान नाहीं अपितु देवता, असुर भी लिपटाइल बा।
गोसाईंजी आगे लिखतानी की ग्यानीलोग ए संसार से, ए नासवान संसार से मुक्ति पावे खातिर सबसे बड़हन साधन भगवान की चरनिए के मानेलालोग मतलब अगर ए भवसागर से पार होखे के बा तs राम की सरन में, भगवान की सरन में जाए के ही परी नाहीं तS घूमीफिरी के एही भवसागर में माया में अझुराइल रहे के परी।
एही से ग्यानीलोग माया के ठगिनी कहेला अउरी सदा ओसे बचलेके उपाय खोजेला:-
माया महा ठगनी हम जानी। (कबीरदास)
दुनिया माया की पीछे भागेला अउरी माया भगवान की पीछे। हमनीजान खातिर इ दुनिया ही माया बा। जेई दिन हमनीजान माया की पीछे भागल छोड़ी के भगवान की पीछे भागे लागल जाई, ओईदिने से हमनीजान के भला हो जाई अउरी आसानी से ए भवसागर से छुटकारा मिली जाई।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।

सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥५॥


भावार्थ:- ए अस्लोक में गोसाईंजी जगत जननी जगदंबा माई सीता के बंदना करतानीं, उहाँ की पैर पड़तानी। गोसाईंजी कहतानी की पैदा करेवाली, पालन करेवाली (जीवन के बनाए रखेवाली) संहार करेवाली, दुख-दर्द हरेवाली अउरी सब कल्यान के करेवाली भगवान राम की बल्लभा (पतनी) माई सीता की आगे हम नतमस्तक हो तानी, उहाँ की पैर पड़तानी।
ए इस्लोक में जवन सबसे गवर करेवाली बात बा, उ इ की गोसाईंजी माई सीता के तीरीसक्ती मानतानीं। उहाँ का कहतानीं की माई सीते जगत के बनावेवाली, रछा करेवाली अउरी बिनास करनेवाली हई। सब दुख के दूर करेवाली भी उहे हई। कारन की सीता जी ओ परम ईस्वर के सक्ति हई, उ जगत जननी हई। जब-जब उ परम-पिता अवतार लेनें आ कवनो काम करेने तब-तब माई जगत-जननी के भी उनकी संघे आवे के परेला, उनकरी साथे रहे के परेला काहेंकि भगवान अपनी सक्ति की बिना पूरन नाहीं रहेने।
हाँ तs ए इस्लोक से इ सिध हो जाता की माई सीता साक्षात जगत जननी हई, आदि सक्ति हई चाहें कही सकेनी की ओही जगत जननी आदी सक्ति के रूप हई अउरी भगवान (राम) की लीला में सरीक होखे खातिर सीता की रूप में अवतरित भइली। जवनेगाँ भगवान के कईगो अवतार बा ओहींगा माई जगत जननी के भी कईगो अवतार बा ओही में से एगो रामावतार की संघे सीतावतार रहे। बोलीं सभे माई जगत जननी सीता माता की जय।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008


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सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।

वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥४॥


भावार्थ:- ए श्लोक में गोसाईंजी आदि कबी बालमीकीजी अउरी भगवान राम के परम भक्त हनुमानजी के बंदना करतानीं। उहाँ का कहतानी की हम माई जानकी अउरी प्रभो राम के गुनसमूह रूपी बन में आनंदित मन से फिरेवाला, घूमेवाला, खरा ग्यान (विशेष ग्यान) के जानकार कबिलोगन के सिरोमनी (कवीश्वर) श्री बालमीकीजी अउरी वानरलोगन में सर्वश्रेस्ठ (कपीश्वर) श्री हनुमानजी के बंदना करतानीं।
इहवाँ गोसाईंजी आदी कबी बालमीकीजी के एकदम खरा, सच्चा विसेस ग्यान में निपुन बतावतानीं। अउरी ए बाती के परमान ए ही से मिल जाला की संस्क्रित में सबसे पहिले रामायन बालमिकीएजी लिखनीं अउरी ए रामायन में ग्यान के पराकास्ठा बा। ग्यान के भंडार बा अउरी एही रामायन की आधार पर गोसाईंजी लोकभाखा अवधी में रामायन लिखनीं।
अउरी हाँ जब राम की चरीत के गुनगान होइ तS उहाँ के अनन्य भगत हनुमानजी कइसे छुटी सकेनीं। काँहे की कहल जाला जहवाँ भी राम के गुणगान होला उहवाँ हनुमानजी के बास होला। अउरी एगो कहानी की अनुसार गोसाईंजी के भगवान राम के पहिला दरसन हनुमानेजी की कीरीपा से भइल रहे; आईं इहो कहानी सुनी लेहल जाव-
जब तुलसीबाबा के भेंट हलुमानजी (हनुमानजी) से भइल तS हनुमानजी तुलसीबाबा से इ वादा कइनीं की हम तोहरा के भगवान राम के दरसन करा देइबी। पर बार-बार तुलसीबाबा की सामने भगवान राम जाँ पर तुलसीबाबा पहिचाने नाहीं पावें। एकदिन के बाती हS की चितरकूट की एगो घाटे पर संत लोग अपनी पूजा-पाठ में जुटल रहे लोग अउरी तुलसीबाबा चंनन खीसत रहने तब्बे भगवान राम लइका की रूप में उनकी लगे गइने अउरी लगने उनसे चंदन लगवावे। इकरी बाद तुलसीओबाबा आ लइका से अपनी लिलारे पर लगने चंनन लगवावे पर अबो तुलसीबाबा के इ भान नाहीं भइल की इ लइका भगवान रामें हउअन। हनुमानजी सोंचने की का उपाई करीं की तुलसीबाबा भगवान राम के पहिचान लें। हनुमानजी के फटाक से एगो बाती सुझल अउरी उ सुगा की बोली में बोलने-

चित्रकूट की घाट पर भइ संतन की भीर,
तुलसीदास चंनन घीसे, तिलक देत रघुवीर।

अब तुलसीदासजी छकी-छकी के भगवान राम के रूप रूपी अमरीत के पान कइनीं अउरी भगवाने में खो गइनीं।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥३॥


भावार्थ:- ए स्लोक में गोसाईं तुलसीदासजी भगवान संकर के बंदना करताने। अपनी ए बंदना में उ कहताने की हम बोधमय (ग्यान से भरल), नित (जेकर कबो नास ना होला यानि अबिनासी) संकर भगवान जइसन गुरु के बंदना करतानीं। जेकरी खाली आस्रय में चली गईले से टेढ़ चाँद भी हर जगह पूजनीय हो जाने।

इहाँ गोसाईंजी की कहले के मतलब इ बा की भगवान संकर एगो सच्चा गुरु की तरे सदा अपनी चेलन पर आपन नेह बनवले रहेने अउरी हरदम अच्छा राह देखावेने। भगवान संकर पर जे आपन सबकुछ छोड़ी देला ओकर सदा खातिर कल्यान हो जाला। जे उनकरी सरन में चली गइल उहो बढ़ाई के पात्र हो जाला चाहें ओकरी में लाखगो बुराई काहें नाहीं होखे।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय

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गुरुवार, 4 दिसंबर 2008


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भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥

भावार्थ- गोसाईंजी महराज ए श्लोक में लिखतानी की हम सरधा अउरी विस्वास के रूप माई पारबती अउरी भगवान शंकर के बंदना करतानीं। जेकरी बिना किरिपा के सिध पुरुस, महात्मा भी अपनी हिरदय में बिराजमान भगवान के नाहीं देखी सकेला लोग।
ए दूसरा श्लोक में गोसाईंजी सिउसक्ती के याद करतानी, उहाँ सब की पैर पड़तानी काहेंकि ओ सब की किरिपा से ही भगवान के सच्चा अनुभव हो सकेला अउरी दरसन हो सकेला। भगवान संकरे अउरी माई परबतिए सच्चा गुरु की तरे भगवान के पावे के रास्ता बता सकेला लोग। इहाँ एक बात अउर बा, उ इ की संकरे भगवान की प्रेरना से तुलसीदासजी रामायन लिखल सुरु कइनीं।

ए श्लोक में गोसाईंजी इहो एकदम अस्पस्ट क देले बानीं की भगवान तS सबकी हिरदय में बाने, बस उनके चिन्हले के जरुरत बा। ए प्रसंग पर हमरा कबीरदासजी के एगो दोहा यादी आवता-
मोको कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में, ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में,
खोजी होय तो तुरतहीं मिलिहें, सब साँसों की साँस में।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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बुधवार, 3 दिसंबर 2008

मंगलाचरण


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प्रथम सोपान : बालकांड

रामायन के पहिला कांड बालकांड हS। ए कांड में भगवान की जनम से लेके उनकरी बिआहे तक के बरनन कइल गइल बा।


श्लोक-

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥

भावार्थ- गोसाईं तुलसीदास जी महराज रामायन की सुरुआते में सबसे पहिले ब्रह्म रूपी अछर, सब अरथ, काव्य में रहेवाला सब रस , छंद की संघे -संघे सदा मंगल करेवाली सरस्वती अउरी गणेश जी के बंदना करताने।
इहवाँ बिचार करेवाली बात इ बा की बिना अछर, अरथ, रस, छंद आदि की बिना कवनो काव्य के रचने ना हो सकेला, मुँहे से बतिये ना निकल सकेला अउरी ए सब के मालिक तS सरसतिये माई अउरी गनेशेजी हउवे लोग। गनेशजी वइसे परथम पूज्यो मानल जाने अउरी हर परकार की बाधा के दूर करेवाला हउअन। ए सब कारन से गोसाईं जी परथम सलोके में इहाँ सब के बंदना कइले बानीं। काँहेकी इहाँ सब की किरिपा की बिना इ एतना बड़हन जगी पूरे ना हो सकेला।

जय जय राम, जय हनुमान।
-प्रभाकर पाण्डेय
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आरती श्रीरामायनजी की

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आरती श्रीरामायनजी की।
कीरति कलित ललित सिय पी की।।
गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद।
बालमीक बिग्यान बिसारद।।
सुक सनकादि सेष अरु सारद।
बरनि पवनसुत की‍रति नीकी।।
गावत बेद पुरान अष्टदस।
छओ सास्त्र सब ग्रंथन को रस।।
मुनि जन धन संतन को सरबस।
सार अंस संमत सबही की।।
गावत संतत संभु भवानी।
अरु घट संभव मुनि बिग्यानी।।
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी।
कागभुसुंडि गरुड के ही की।।
कलिमल हरनि बिषय रस फीकी।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की।।
दलन रोग भव मूरि अमी की।
तात मात सब बिधि तुलसी की।।
आरती श्रीरामायनजी की।
कीरति कलित ललित सिय पी की।।
ःःःःःःःःःःःःःः
बोली सभें रामायनजी की जय।।


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गोसाईं तुलसी दास

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रामायन के रचयिता तुलसीदासजी भगवान राम के परम भक्त रहनीं। इहाँका अपनी इष्टदेव भगवान राम की पावन चरित के घर-घर में पहुँचावे खातिर दिन-रात एक कS के राम चरित मानस (रामायन) के रचना मूल अवधी भासा में कइनीं। गोसाईंजी की पहिलहुँ बालमीकीजी द्वारा रचित रामायन
उपलब्ध रहे (अउरी अबो बा) पर उ संसक्रित में रहे। अउरी ओहु समय कम लोग संसक्रित समझे। ए कारन से राम के इ पावन अनुकरनीय चरित आम जनता की पहुँच से बाहर रहे। गोसाईं जी अवधी यानि आम आदमी की भासा में ई ग्रंथ लिखी के ए के घर-घर में पहुँचा देहनीं अउरी ए ग्रंथ की संघे-संघे जनता जनार्दन उहों के भक्त हो गइल। गोसाईंजी ए ग्रंथ के रचना एतना सीधा, सरल अउरी मिठऊ भासा में कइनीं, ए में एतना रस भरी देहने की बार-बार पढ़ले-सुनले की बादो सुनवइया आ कहवइया के आनन्द बढ़ते जाला अउरी ओकरा ए कथा से कबो पेट नाहीं भरेला। जे एक बार ए कथा के सरवन कS ले ला उ बार-बार ए कथा के सुनल चाहेला। गोसाईंजी ए ग्रंथ की अलावा अउरियो कईगो ग्रंथ लिखनीं।
अब आईं सभें तनी संछेप में गोसाईं जी की बारे में कुछ अउर जानी लेहल जाव।
गोसाईंजी के जनम राजापुर नामक गाँव में एक बाभन परिवार में संबत 1554 में सावन की अँजोरिया में सतमी के भइल रहे। इहाँ की माता के नाव हुलसी अउरी पिता के नाव आत्माराम दूबे रहे। एइसन कथा मिलेला की जनमते इहाँ के माई-बाप इहाँ के तेयागी देहल।
धीरे-धीरे गोसाईंजी बड़हन होखे लगनीं अउरी इहाँ के भेंट नरहरीदास से भइल अउरी नरहरी जी इहाँ के नाव रामबोला रखी देहनीं। ओकरी बाद नरहरीजी इहाँ के लेके अजोध्या गइनी अउरी उहवें गोसाईंजी के जनेऊ भइल।
आगे चली के गोसाईंजी के भेंट हनुमानजी से भइल अउरी हनुमानजी की किरीपा से गोसाईंजी भगवान राम के दरसन कइनीं।
संबत 1680 में इ महान संत सिरोमनि अपनी आत्मा के ब्रह्मलीन कS लेहनीं।
बोली सभें गोसाईं तुलसीदास महराज की जय।


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तुलसी रामायन


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राम-राम पाठक महानुभाव लोगीं। तुलसी रामायन में रउआँ सब के तुलसी के रामायन ही पढ़े के मिली पर जवन ओकर भावार्थ रही उ रही भोजपुरी में। काँहे की हमार इ इच्छा बा की भोजपुरिया जनता जनारदन रामायन के भावार्थ रूपी अमरित के रसासवादन अपनी भासा में करो। ए से हमरा जवन सबसे बड़हन फायदा होई उ इ की हम रामायन के भावार्थ भोजपुरी में लिखी के भोजपुरी के समरीद्ध कइले की साथे-साथे भगवानो की लीला रूपी अमरीत के छक-छक के पीयबी अउरी इ अमरीत भोजपुरिया जनता जनारदन के ओकरी भासा रूपी बरतन में पिए खातिर ढारी-ढारी के देइब। हमरा पूरा बिस्वास बा की ए महाजगी में रउरा सभ के पूरा सहयोग अउरी आसिरबाद हमरा के मिली। समय-समय पर आप सब के बिचार-सुझाव हमके रास्ता देखाई। बहुत-बहुत धनबाद आप सबके।

राउर सेवक-
प्रभाकर गोपालपुरिया

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